Raksha Bandhan 2023: जानिए रक्षाबंधन से जुड़ी 7 रोचक जानकारियां और कहानियां

Billy Rogers

पौराणिक कथा रक्षाबंधन से जुड़ी एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार मृत्यु के देवता यमराज और यमुना भाई-बहन थे। एक बार यमुना ने अपने भाई यमराज को रक्षासूत्र बांधा और लंबी उम्र का आर्शीवाद दिया था। तभी से यह परंपरा हर श्रावण पूर्णिमा को चलती आ रही है।

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एक अन्य पौराणिक कथा एक दूसरी पौराणिक कथा भी है जिसके अनुसार एक बार राजा इंद्र और दानवों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया था जिसमें इंद्र की पराजय होने लगी थी। तब इंद्र की पत्नी शुची ने गुरु बृहस्पति के कहने पर इन्द्र की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। इस रक्षा सूत्र के कारण ही दानवों पर राजा इंद्र की जीत हो सकी थी। तब से रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है।

महाभारत में राखी महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सेना की रक्षा के लिए राखी के रस्म का सुझाव दिया था। इसके अलावा कुंती ने अपने पौत्र अभिमन्यु और द्रोपदी ने श्रीकृष्ण को राखी बांधी थी।

ऐतिहासिक कहानी महान कवि और नोबल विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बंगाल के विभाजन के दौरान हिंदू-मुस्लिम के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ाने के लिए रक्षाबंधन मनवाया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने  हिंदू और मुसलमानों को एक दूसरे को राखी बांधने के लिए प्रोत्साहित किया। ताकि शान्ति बनी रहे। 

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राखी और सिकंदर की कहानी राखी के कारण से सिकंदर की जान बच पाई थी। दरअसल सिकंदर की पत्नी ने हिन्दू शासक पुरु का राखी बांधी और अपना भाई बनाया था। एक बार सिकंदर और हिन्दू राजा पुरु के बीच युद्ध होने लगा। युद्ध में पुरु ने हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था।

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रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं की कहानी राखी बांधने की प्रथा राजस्थान से शुरू हुई। जिसके अनुसार मेवाड़ की महारानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं कि कहानी है। महाराना कर्णावती ने अपने पति की रक्षा के लिए मुगल राजा हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने राखी की लाज रखी। तभी से राखी बांधने कि परम्परा शुरू हुई।

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राजा बाली और देवी लक्ष्मी की कथा  एक बार राजा बाली ने भगवान विष्णु को अपनी प्रजा की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु को अपने साथ ले जाने के लिए राजी कर लिया था। लेकिन देवी लक्ष्मी ऐसा नहीं चाहती थीं। श्रावण पूर्णिमा के  दिन लक्ष्मी जी ने बाली की कलाई पर धागा बांधा और उन्हें अपना उद्देश्य बताया। इसके बाद बाली ने भगवान विष्णु से घर छोड़कर न जाने का अनुरोध किया।